अल्लाह के ज़िक्र और ख़ौफ़ के सबब गिरिया ओ ज़ारी

ख़ौफ़े खुदावंदी से रोना एक मंदूब फेअ़ल है और ये किताब और सुन्नत दोनों से साबित है। चुनांचे अल्लाह سبحانه وتعالیٰ फ़रमाता हैः

اَفَمِنْ هٰذَا الْحَدِيْثِ تَعْجَبُوْنَۙ   (*) وَ تَضْحَكُوْنَ وَ لَا تَبْكُوْنَۙ
अब क्या तुम इस कलाम पर ताज्जुब करते हो? और हंसते हो और रोते नहीं? (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम: अन्नजम -59, 60)

وَيَخِرُّونَ لِلۡأَذۡقَانِ يَبۡكُونَ وَيَزِيدُهُمۡ خُشُوعً۬ا
और वो रोते हुए ठोढ़ियों के बल गिरते हैं और ये क़ुरआन उनकी आजिज़ी को बढ़ा देता है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : बनी इसराईल -109 (आयते-सज्दा)

إِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَـٰتُ ٱلرَّحۡمَـٰنِ خَرُّواْ سُجَّدً۬ا وَبُكِيًّ۬ا
जब उन्हें रहमान की आयात सुनाई जाती, तो वो सज्दा करते और रोते हुए गिर पड़ते थे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआन: मरयम-58 (आयते सज्दा)

हज़रत इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) कहते हैं के नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने मुझ से कहा के मैं क़ुरआन पढ़ कर सुनाऊं। मैंने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल में आप को सुनाऊं हालाँके क़ुरआन तो आप पर नाज़िल होता है। तो आप ने फ़रमाया मैं दूसरे से सुनना पसंद करता हूँ। मैंने सूरह अन्निसा की तिलावत शुरू की और जब इस आयत पर पहूँचाः

فَكَيْفَ اِذَا جِئْنَا مِنْ كُلِّ اُمَّةٍۭ بِشَهِيْدٍ وَّ جِئْنَا بِكَ عَلٰى هٰۤؤُلَآءِ شَهِيْدًا
फिर सोचो के उस वक़्त ये क्या करेंगे जब हम हर उम्मत में से एक गवाह लाएंगे और उन लोगों पर तुम्हें (यानी मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) को) गवाह की हैसियत से खड़ा करेंगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : अन्निसा- 41)

आप ने कहा बस काफ़ी है। तो मैंने देखा के आप की दोनों आँखों से आँसू जारी थे।
हज़रत अनस (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस मरवी है के एक मर्तबा रसूले अकरम  (صلى الله عليه وسلم)  ने ख़ुतबा दिया और कहाः

((لوتعلمون ما أعلم لضحکتم قلیلاً ولبکیتم کثیرًا، فغطی أصحاب رسول اللہ ا وجوھم ولھم خنین))

ऐ लोगों! अगर तुम को वो चीज़ें मालूम हो जाऐं जो मुझे मालूम हैं तो तुम हंसोगे कम और रोओगे ज़्यादा। सहाबा किराम رضی اللہ عنھم ने अपने चेहरों को ढाँप लिया और उनसे रोने की आवाज़ आ रही थीं।

अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस मनकूल है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः
((سبعۃ یظلھم اللہ في ظلہ، یوم لا ظل إلا ظلہ: ۔۔۔ ورجل ذکر اللہ خالیا، ففاضت عیناہ))

सात लोगों को अल्लाह अपने साये में रखेगा जिस दिन उसके अ़लावा कोई और साया ना होगा। इन में एक वो शख़्स भी होगा जिसकी आँखें तन्हाई में ज़िक्रे इलाही से तर हों।

इब्ने उमर (رضي الله عنه)  से मरवी मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस है वो कहते हैं के जब रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) को तकलीफ़़ में शिद्दत आ गई तो आप से नमाज़ के बारे में दरयाफ़्त किया गया तो आपने फ़रमायाः अबूबक्र (رضي الله عنه) से कहो के लोगों की इमामत करें। तो हज़रत आईशा (رضي الله عنه)ا ने कहाः अबूबक्र (رضي الله عنه) नर्म दिल हैं जब क़ुरआन की तिलावत करेंगे तो ज़ब्त ना कर पाने की वजह से उन पर रिक़्क़त तारी हो जाऐगी।

हज़रत अनस (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने उबई बिन काब (رضي الله عنه) से फ़रमायाः अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल ने मुझे हुक्म दिया है के तुम को ये आयत सुना दूं। उबई ने कहाः क्या अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने मेरा नाम लिया है? आप ने फ़रमायाः हाँ तो हज़रत उबई बिन काब (رضي الله عنه) रो पड़े।  

तिरमिज़ी में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से सही हदीस मरवी है के वो कहते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((لا یلج النار رجل بکی من خشیۃ اللہ حتی یعود اللبن في الضرع، ولا یجتمع غبار في سبیل اللہ ودخان جھنم))

अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के ख़ौफ से रोने वाला इंसान दोज़ख़ में दाख़िल नहीं होगा जब तक के दूध थन में वापिस ना चला जाय। (ये ना मुम्किन है) और अल्लाह की राह में पहुंचने वाली गर्द और ग़ुबार और दोज़ख़ का धुआँ जमा नहीं हो सकते।

इमाम नौवी, सुनन अबी दाऊद और शुमाइल तिरमिज़ी में हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन अलशख़ीर (رضي الله عنه) से नक़ल किया हैः

((أتیت النبي ا وھو یصلی ولجوفہ أزیز المرجل من البکاء))
कहते हैं के मैं रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) के पास आया और आप नमाज़ पढ़ रहे थे। तो रोने की आवाज़ आप के पेट से आ रही थी जैसे हांडी से उबलते वक़्त आवाज़ निकलती है।

इब्राहिम बिन अब्दुर्रहमान बिन औफ से मरवी है वो कहते हैं के अब्दुर्रहमान बिन औफ़ (رضي الله عنه) के सामने ब हालते सोम (रोज़े की हालत में) खाना लाया गया तो आप (رضي الله عنه) ने कहाः
(قتل مصعب بن عمیر وھو خیراً مني، کفن في بردۃ،إن غطي رأسہ بدت رجلاہ، و إن غطي رجلاہ بدا رأسہ،و أراہ قال و قتل حمزۃ وھو خیراً مني، ثم بسط لنا ما بسط أو قال أعطینا من الدنیا ما أعطینا، وقد خشینا أن تکون حسناتنا عجلت لنا، ثم جعل یبکي حتی ترک الطعام)
हज़रत मुसअब इब्ने उमैर (رضي الله عنه) क़त्ल हुए और वो मुझ से बेहतर थे, उनके कफ़न के लिए उनका लिबास इस्तिमाल किया, जब सर को ढाँकते तो पैर खुल जाते और जब पैरों को ढाँकते तो सर खुल जाता था। हमज़ा (رضي الله عنه) शहीद कर दिए गए और वो भी मुझ से बेहतर थे और हमारे लिए दुनिया की ये नेअ़मतें रह गईं, हमें ये ख़ौफ़ रहता था के हमें ये नेअ़मतें जल्दी मिल गईं (इस दुनिया में ही मिल गईं)। फिर वो रोते रहे यहाँ तक के खाना भी छूट गया।

सुनन अबू दाऊद और तिरमिज़ी में रिवायत है के अ़रबाज बिन सारिया (رضي الله عنه) कहते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने वाज़ फ़रमाया, हम को एैसी नसीहत फ़रमाई के हमारे दिल लरज़ गए और आँखों से आँसू जारी हो गए।

हज़रत अनस (رضي الله عنه) से हाकिम ने रिवायत नक़ल की है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः
((من ذکراللہ ففاضت عیناہ من خشیۃ اللہ، حتی یصیب الأرض من دموعہ، لم یعذب یوم القیامۃ))
जो अल्लाह को याद करे और ख़शीयते (ख़ौफे) इलाही से उसकी आँखें नम हों और ज़मीन को पहुंच जाये तो ऐसे शख़्स को क़यामत में अ़ज़ाब नहीं दिया जाऐगा।

मुसनद अहमद, हाकिम और नसाई में अबू रैहाना (رضي الله عنه) से मरवी हैः हम रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) के साथ एक ग़ज़वे में निकले तो मैंने आप को कहते सुनाः

((حرمت النار علی عین دمعت من خشیۃ اللہ، حرمت النار علی عین سھرت في سبیل اللہ ونسیت الثالثۃ وسمعت بعد أنہ قال حرمت النار عی عین غضت عن محارم اللہ))

आग हराम है उस आँख पर जो ख़ौफे़ ख़ुदावंदी से भीग जाये। आग हराम है उस आँख पर जो राह ख़ुदा मैं शब बेदारी करे और तीसरी को मैं भूल गया। बाद में मैंने सुना के आपने फ़रमाया था के आग हराम है उस आँख पर जो महारिमे इलाही को देख कर बंद हो जाये।
इब्ने अबी मलाऐका कहते हैं के हम अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर (رضي الله عنه) के पास कमरे में बैठे हुए थे आप ने फ़रमायाः

((ابکوا فإن لم تجدوا بکاء فتباکوا،لو تعلمون العلم لصلی أحدکم حتی ینکسر ظھرہ،ولبکی حتی ینقطع صوتہ))
गिरिया और ज़ारी करो अगर रोना ना आए तो रोने की कोशिश करो, अगर तुम जानते तो तुम इतनी नमाज़़ पढ़ते के कमर टूट जाती और इतना रोते के आवाज़ बंद हो जाये।

इब्ने ख़ुज़ैमा में हज़रत अ़ली (رضي الله عنه) से रिवायत है, फ़रमाते हैं के मिक़दाद के अ़लावा बदर के दिन हम में कोई सवार ना था और रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) के अ़लावा कोई नमाज़़ में खड़ा ना था। आप एक दरख़्त के नीचे नमाज़ पढ़ रहे थे और रोते जाते यहाँ तक के सुबह हो गई।

हज़रत सौबान (رضي الله عنه) कहते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((طوبی لمن ملک نفسہ، ووسعہ بیتہ، وبکی علی خطیئتہ))
ख़ुश ख़बरी है उसके लिए जिस ने अपने नफ़्स को क़ाबू में रखा और अपने घर की हस्बे हाल वुसअ़त में रहा और उसने अपनी ख़ताओं पर आंसू बहाए।


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